जान लीजिए, मरने के कितने दिनों के बाद मिलता है नया जन्म
दिल्ली:- एक शोध से यह बात सामने आई है कि सौ लोग शरीर छोड़ते हैं तो उनमें से करीब पचासी लोग तुरंत अर्थात पैंतीस से चालीस सप्ताह के भीतर जन्म ले लेते हैं। बाकी पंद्रह प्रतिशत लोगों में से ग्यारह प्रतिशत लोगों को एक से तीन साल के भीतर नया जन्म मिल जाता है। बंगलौर स्थित स्पिरिचुअल साइंस रिसर्च फाउंडेशन(एसएसआरएफ) के अध्ययन को मानें तो मरने वालों में चार प्रतिशत आत्माओं को लंबा इंतजार करना पड़ता है। यह इंतजार चार सौ साल से हजार और कभी कभी तो हजारों साल तक इंतजार करना पड़ता है।
मरने वाले लोगों में चार प्रतिशत को तीन सौ साल से हजार साल तक और हो सकता है हजारों साल तक जन्म लेने के लिए इंतजार करना पड़े। फाउंडेशन ने यह अध्ययन मैडम ब्लैवट्स्की और लेड बीटर की स्थापित की हुई थियोसोफिकल सोसाइटी के साथ मिलकर किया है। अध्ययन के मुताबिक पचासी प्रतिशत लोगों को मृत्यु के तुरंत बाद गर्भ मिल जाता है। इसकी वजह फाउंडेशन के अनुसार ज्यादातर आत्माएं सामान्य शरीरधारी होती है। और उन्हें नया जन्म लेने में न इंतजार करना पड़ता है न कोई कठिनाई होती है। विलक्षण और प्रतिभाशाली व्यक्तियों की आत्माओं को नए गर्भ के लिए रुकना पड़ता है। क्योंकि विलक्षण या आसाधारण आत्माएं उसी तरह के व्यक्तियों को माध्यम बनाती है। रिपोर्ट में पिछले सौ साल में जन्में व्यक्तियों के जीवन, स्वभाव, परिवेश और माता पिता की स्थिति का ब्यौरा जुटाया गया।
करीब डेढ़ हजार दंपतियों के जुटाए इस ब्यौरे में अभिजात्य, खाते पीते मध्यम वर्ग और साधारण स्तर के लोगों के अलावा अपराधियों और साधु स्वभाव के व्यक्तियों से बातचीत की गई। इनमें करीब आठ सौ लोगों को पिछले जन्म की स्मृतियों( पास्ट लाइफ मैमोरी) में ले जाया गया। जो विवरण मिले उनके अनुसार दो प्रतिशत लोग ऐसे होते हैं जो या तो खूंखार अपराधी थे या संत महात्मा। इन्हें नया जन्म लेने के लिए रुकना पड़ता है। व्यक्ति साधु हो तो क्या और असाधु या क्रूर हो तो क्या, होता तो असाधारण ही है। असाधारण व्यक्तियों को नया शरीर और नया जन्म पाने के उपयुक्त स्थितियां और वैसे ही माता पिता चाहिए। राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, नानक जैसे अवतारी महापुरुषों से ले कर रावण, कंस, अंगुलिमाल, मार, चंगेज खान, औरंगजेब जैसे क्रूर व्यक्तियों के उदाहरण है, जो अपने क्षेत्र और प्रवृत्तियों में अन्यतम थे।
संत महात्माओं के पूर्वजन्म के वृत्तातं तो आज भी मिलते हैं। उदाहरण के ओशो ने एक बार अपने प्रवचन में कहा था कि उनका पिछला जन्म सात सौ वर्ष पुराना है। सात सौ वर्ष पहले वे कोई अनुष्ठान कर रहे थे, अनुष्ठान पूरा होने के तीन दिन पहले उनकी हत्या हो गई और सूक्ष्म शरीर उपयुक्त गर्भ तलाशता रहा। दोबारा जन्म लेने की स्थितियां सात सौ साल बाद बनी। कहते हैं कि अनुष्ठान के तीन दिन पूरे करने के लिए उन्हें इस जीवन में इक्कीस वर्ष तक रुकना पड़ा। एसएसआरएफ की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शरीर छूटते ही नया जन्म नहीं मिल जाता तो कर्मों के अनुसार विभिन्न लोकों में समय व्यतीत करना होता है। उन लोकों या मन:स्थितियों में भी आत्मा या चेतना को अपनी धुलाई सफाई का अवसर मिलता है।