यमराज की नगरी यमलोक की 10 बातें जान लीजिए
पुराणों में यमराज को मृत्यु का देवता बताया गया है। इनका निवास यमलोक माना गया है। आइये जानें की मृत्यु के देवता की नगरी कहां और कैसी है।
यमलोक में यमराज का विशाल राजमहल है जो 'कालीत्री' नाम से जाना जाता है। यमराज अपने राजमहल में 'विचार-भू' नाम के सिंहासन में बैठते हैं।
गरूड़ पुराण और कठोपनिषद में यमलोक के बारे में बताया गया है जिसमे कहा गया है कि 'मृत्युलोक' के ऊपर दक्षिण में 86,000 योजन की दूरी पर यमलोक बसा है। योजन प्राचीन काल में दूरी नापने का पैमाना था। एक योजन में 4 किलोमीटर होते हैं।
यमलोक में प्रवेश के लिए चार द्वार हैं जो चारों दिशाओं में स्थित हैं। दक्षिण के द्वार से पापियों का प्रवेश होता है। दान-पुण्य करने वाले व्यक्ति पश्चिमी द्वार से प्रवेश करते हैं। उत्तर द्वार से उन्हें प्रवेश मिलता है जो सात्विक विचारों वाले और सत्यवादी होते हैं। माता-पिता एवं गुरूजनों की सेवा करने वाले भी इसी द्वार से यमलोक में प्रवेश पाते हैं।
सबसे उत्तम द्वार उत्तर दिशा में है। इसे स्वर्ग द्वार के नाम से जाना जाता है। इस द्वार से सिद्ध संत और मुनियों को प्रवेश मिलता है। इस द्वार से प्रवेश करने वालों का स्वागत अप्सराएं, देव और गंधर्व करते हैं।
यमराज के कई सेवक हैं जिन्हें यमदूत कहा जाता है। इनके दो प्रमुख रक्षक हैं महाण्ड और कालपुरुष। यम की नगरी के द्वारपाल हैं वैध्यत। इसके अलावा दो कुत्ते जिनकी चार आंखें तथा चौड़े नथुने हैं वह यमलोक की रक्षा करते हैं।
यमलोक में यमराज के सहायक और प्राणियों के कर्मों का हिसाब रखने वाले चित्रगुप्त का भवन है। चित्रगुप्त के भवन के चारों ओर चारों दिशाओं में विभिन्न प्रकार के रोगों का निवास है।
चित्रगुप्त के भवन से 20 योजन दूर यानी 80 किलोमीटर की दूरी पर यमराज का भवन है।
यमलोक में पुष्पोदका नाम की एक नदी बहती है। इस नदी का जल स्वच्छ और शीतल है। नदी के तट सुंदर है और यहां छायादार वृक्ष भी मौजूद हैं। यमलोक की यात्रा करते समय आत्मा को यहां कुछ समय यहां विश्राम का अवसर मिलता है। यहीं पर परिजनों द्वारा दिया गया पिंडदान और तर्पण आत्मा को प्राप्त होता है।
यमराज का भवन देव शिल्पी विश्वकर्मा द्वारा बनाया गया है। इस भवन में हर तरह का सुख मौजूद है। यमराज की सभा में मनुष्य और देवताओं की सारी इच्छाएं पूरी होती है। यमराज की सभा में कई चन्द्रवंशी और सूर्यवंशी राजा रहते हैं जिनकी सलाह और नीतिज्ञान से यमराज प्रेतात्माओं को उनके कर्मानुसार फल देते हैं।