भोपाल:- जीवन और मृत्यु के बारे में सबसे बड़ा ज्ञान गीता में मौजूद है जिसे भगवान श्री कृष्ण की वाणी माना जाता है। इसलिए हिन्दू धर्म में जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म को एक चक्र माना जाता है। इसका कारण यह है कि भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन का मोह भंग करने के लिए गीता का उपदेश देते हुए कहा है कि 'हे अर्जुन ऐसा कोई काल नहीं है जिसमें तुम नहीं थे या मैं नहीं था और आगे भी ऐसा कोई समय नहीं होगा जब तुम और मैं नहीं रहेंगे। मेरे और तुम्हारे कई जन्म हो चुके हैं। मुझे अपने बीते हुए सभी जन्मों का ज्ञान है और तुम्हें नहीं क्योंकि तुम नर हो और मैं नारायण। इसलिए हे अर्जुन जीवन और मृत्यु के मोह में मत उलझो। जैसे मनुष्य वस्त्र बदलता है वैसे ही आत्मा एक शरीर को छोड़कर दूसरे शरीर में प्रवेश कर जाती है यानी नया शरीर धारण कर लेती है।
धार्मिक दृष्टि से पुनर्जन्म की बातों को स्थापित करने वाली कुछ कथाएं भी पुराणों और धार्मिक पुस्तकों में मिलती हैं। महाभारत में एक कथा का उल्लेख मिलता है कि अभिमन्यु की मृत्यु के बाद अर्जुन दुःखी होकर विलाप करने लगे। अर्जुन की बुरी दशा देखकर भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को लेकर स्वर्ग पहुंचे। स्वर्ग में अर्जुन और अभिमन्यु की मुलाकात हुई तो अर्जुन भावुक हो उठे और पुत्र-पुत्र कहते हुए अभिमन्यु से जा लिपटे। अभिमन्यु ने अर्जुन की इस दशा को देखकर कहा कि आप एक जन्म में मेरे पिता बने हैं और मेरी मृत्यु पर इस तरह व्याकुल हो रहे हैं जबकि मैं कई जन्मों तक आपका पिता रह चुका हूं लेकिन मै तो तुम्हारी मृत्यु पर ऐसा व्याकुल नहीं हुआ था। इसलिए वापस पृथ्वी पर लौट जाओ। अभिमन्यु से ऐसी बातें सुनकर अर्जुन का मोह भंग हो गया और उन्हें पुनर्जन्म का ज्ञान मिल गया।
पुनर्जन्म की एक और कथा महाभारत में मिलती है जो पितामह भीष्म से जुड़ी है। अर्जुन के वाणों से घायल होकर भूमि पर लेटे हुए भीष्म जब कृष्ण से पूछते हैं कि आज जो वह वाणों की शैय्या पर लेटे हैं वह किस कर्म का फल है। जहां तक मुझे अपने 7 जन्मों की बातों याद हैं उनमें मैंने ऐसा कोई कर्म नहीं किया है जिसके लिए मुझे वाणों की शैय्या पर पर सोने का कष्ट भोगना पड़े। भीष्म के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्रीकृष्ण बताते हैं कि आपको अपने 8 वें जन्म की बात याद नहीं है। उस जन्म में आपने एक सांप को नागफनी के कांटों पर फेंक दिया था। इससे सांप का पूरा शरीर कांटों से बिंध गया था उसी पाप के कारण आपको आज वाणों की शैय्या मिली है। कारण आपको वाणों की शैय्या प्राप्त हुई है। अब आइये जानें कि धर्म के अनुसार पुर्नजन्म कैसे होता है. और व्यक्ति को नया जीवन किस आधार पर मिलता है।
पुनर्जन्म और पूर्वजन्म के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए वेदांत दर्शन में जीवन मृत्यु के बारे में काफी कुछ कहा गया है। वेदांत जीवन और मृत्यु के चक्र में पुनर्जन्म की गुत्थी को सुलझाने का प्रयास करते हुए गीता दर्शन की ओर ले जाता है और बताता है कि जीवन मृत्य और पुनर्जन्म यह सब जीव के कर्मों का परिणाम होता है। व्यक्ति का पुनर्जन्म उसके पूर्व जन्मों के संचित कर्म, इच्छा, भोग और वासना पर निर्भर करता है। जीव की जैसे इच्छा, वासना और भोग की कामना रहती है उसी अनुसार उसे नया शरीर, परिवेष और बाकी सारी चीजें भी मिलती हैं। पुराणों में कई कथाएं भी मिलती हैं जो यह बताती हैं कि मृत्यु के समय व्यक्ति की जैसे चाहत और भावना होती है उसी अनुरूप उसे नया जन्म मिलता है। एक कथा राजा भारत की है जो हिरण के बच्चे के मोह में ऐसे फंसे कि अंतिम समय मे उसे के ख्यालों में खोए रहे। इसका परिणाम यह हुआ कि पुण्यात्मा होते हुए भी वह अगले जन्म में पशु योनी में पहुंच गए और हिरण बने। आइये धर्म के बाद अब देखें कि विज्ञान क्या कहता है पुनर्जन्म को लेकर।
पुनर्जन्म को लेकर कई शोध हुए हैं लेकिन पुनर्जन्म को वैज्ञानिक तौर पर अभी मान्यता नहीं मिल पाई है। लेकिन समय-समय पर ऐसे शोध आते रहें हैं जो बताते हैं कि इस जन्म की कई चीज पूर्व जन्म से प्रभावित होती है। अद्वैत आश्रम मुंबई के डा. नरोत्तम पुरी ने शरीर और आत्मा के बीच मन सेतु का काम करता है। वह कर्मों के संस्कार रचता है। अगर वह बनाना छोड़ दे या पूर्व संस्कारों को मिटाने लगे तो अपना अस्तित्व ही खो देगा। शरीर और आत्मा के बीच मन सेतु का काम करता है। वह कर्मों के संस्कार रचता है। अगर वह बनाना छोड़ दे या पूर्व संस्कारों को मिटाने लगे तो अपना अस्तित्व ही खो देगा। फिर मानवीय जीवन में भाव संवेदना की कोई भूमिका ही नहीं रह जाएगी क्योंकि भाव संवेदनाए भी मन में ही जन्म लेती है। कर्मफल के इस नियम को पहले तो शास्त्रीय आधार तक ही सीमित रखा जाता था। अब वैज्ञानिक आधार पर भी इस नियम को परखा जाने लगा है।
मृत्यु के बाद जीवन के अस्तिव पर हुई शोधों मे दो शोध (रिसर्च) महत्त्वपूर्ण मानी जाती है। उनमें एक अमेरिका की वर्जीनिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक डॉ. इयान स्टीवेन्सन के निर्देशन में हुई। 40 साल तक इस विषय पर शोध करने के बाद एक रिपोर्ट "रिइंकार्नेशन एंड बायोलॉजी" के नाम से तैयार हुई। दूसरी शोध बंगलुरू की नेशनल इंस्टीटयूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट के तौर पर काम करते हुए डॉ. सतवंत पसरिया के निर्देशन में हुई।
टा. पसरिया ने भी एक "क्लेम्स ऑफ रिइंकार्नेशनर एम्पिरिकल स्टी ऑफ केसेज इन इंडिया" शीर्षक ले लिखी। इसमें भारत में हुई 500 पुनर्जन्म की घटनाओ का उल्लेख है। लेकिन इन रिपोर्टो और निष्कर्षों को वैज्ञानिक मान्यता नहीं मिल सकी है।
हालांकि अद्वैत आश्रम मुंबई के डा. नरोत्तम पुरी ने अपने एक शोध में कहा है कि कर्मों की भूमिका इसी या अगले जन्म में काम करती है। प्रारब्ध, संचित या क्रियमाण कर्मों के कारण ही कोई व्यक्ति कर्मठ या आलसी स्वभाव का होता है। रोगंटे खड़े होना, मुरझाना, कम होने लगना या उड़ना जैसी स्थितियां मन में आने वाले विकारों के कारण ही आती हैं।
संस्कारों का केंद्र भी मन ही है। उनका कहना है कि गंभीर रोगों के उपचार से पहले मन की पड़ताल भी करनी चाहिए। बीमारियां कई बार पिछले कर्मों के हिसाब से भी आती है।