लोकसभा चुनावों के बाद क्या करेगी AAP?
आंदोलन से राजनीति, राजनीति से चुनाव और फिर विधानसभा से लोकसभा। अरविंद केजरीवाल के गोलपोस्ट बदलते रहे हैं और उसी लिहाज से उनके तौर-तरीकों में भी बदलाव आया है। इन दिनों केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली विधानसभा चुनावों की धमाकेदार जीत के बाद लोकसभा चुनावों में उतरने की तैयारियों को अंतिम रूप दे रही है। जीत की संभावनाओं और देश के सामने खड़े अहम मुद्दों पर चर्चा के अलावा कुछ सियासी सवाल हैं, जो केजरीवाल के सामने आ खड़े होते हैं। लेकिन उनके जवाब देते वक्त वो साफगोई नहीं दिखती, जिसके लिए वो जाने जाते हैं। लोकसभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी क्या किसी दल से हाथ मिलाएगी, यह ऐसा ही एक सवाल था।
सौ से ज्यादा सीटें मिली तो कहां जाएंगे केजरी?
दरअसल यह सवाल खड़ा हुआ है दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले किए गए दावों और उनके बाद की हकीकत पर। अरविंद केजरीवाल का कहना था कि वह कांग्रेस-भाजपा, किसी भी दल से हाथ नहीं मिलाएंगे। लेकिन चुनावों के बाद सरकार बनाते वक्त उन्हें कांग्रेस की मदद लेनी पड़ी। विधानसभा चुनावों में अपना डंका बजाने के बाद अब केजरीवाल दावा कर रहे हैं कि चुनावी सर्वे कुछ भी क्यों न दिखाएं, आगामी लोकसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी सौ से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रहेगी।
जब यह सवाल किया गया कि वो कौन से राज्य या इलाके हैं, जहां से उन्हें इतनी सीटें मिलने की उम्मीद हैं, तो उनका जवाब था, "यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि सीटें कहां से आएंगी, क्योंकि दिल्ली चुनावों में जिन सीटों पर हमें उम्मीद थी वहां हार मिली। जो सीटें हारने का डर था, वहां हमें जीत मिल गई। जनता के रुख के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता।"
केजरीवाल की चुप्पी का मतलब
इसके बाद कुछ मुश्किल सवालों की बारी आई। जब केजरीवाल से पूछा गया कि सौ सीटें जीतने के बाद आम आदमी पार्टी कहीं 'जनमत संग्रह' का सहारा लेकर कांग्रेस या भाजपा के साथ गठबंधन तो नहीं करेगी, पहले वह इस सवाल का जवाब देने से बचते दिखे। लेकिन जोर डालने पर सिर्फ इतना कहा, "मुझे नहीं लगता कि ऐसा होगा।" दरअसल, दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले केजरीवाल ने प्रचार के दौरान बार-बार कहा था कि आम आदमी पार्टी को कितनी भी सीटें क्यों न मिलें, वह कांग्रेस या भाजपा से हाथ नहीं मिलाएंगे। अगर लोकसभा चुनावों के बाद दिल्ली जैसी स्थिति बने और AAP कोई ऐसा फैसला ले, तो शायद हैरानी न हो।
इसकी वजह यह है कि केजरीवाल ने इस संभावना को सिरे से खारिज नहीं किया। सियासत का कुछ पता नहीं है, ऐसे में शायद वह अभी सारी संभावनाएं और विकल्प खुले रखना चाहते हैं। दिल्ली में सरकार बनाने के वक्त 28 विधायकों वाले केजरीवाल को कांग्रेस से मदद मिली, जिसके विधायकों की संख्या आठ थी।
साम्प्रदायिकता क्यों बना बड़ा मुद्दा
आम आदमी पार्टी का वजूद भ्रष्टाचार के मुद्दे पर खड़ा है, लेकिन हाल में दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा था कि भ्रष्टाचार का मुद्दा बड़ा है, लेकिन साम्प्रदायिकता उससे भी बड़ा और गंभीर मसला है। केजरीवाल ने दोहराया कि ये दोनों एक सिक्के के दो पहलू हैं। उन्होंने कहा, "दरअसल, राजनीतिक दल और सरकारें पांच साल तक कोई काम नहीं करती और सिर्फ भ्रष्टाचार पर ध्यान लगाती हैं। जब चुनावों का वक्त आता है, तो दंगे करवाए जाते हैं।"
उन्होंने कहा, "आज तक भाजपा ने हिंदुओं के लिए और कांग्रेस-सपा ने मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया है। सिर्फ चुनावी रोटियां सेंकी जाती हैं। अगर उन्हें सियासी फायदे के लिए एक हजार लोगों का कत्लेआम कराना पड़ा, तो ऐसा करने से पहले वो एक पल भी नहीं सोचेंगे।"
दिल्ली चुनाव, लोकसभा के मुद्दे अलग
लोकसभा चुनावों से ऐन पहले साम्प्रदायिकता का मुद्दा उठाने पर अरविंद केजरीवाल से यह सवाल भी पूछा जा रहा है कि कहीं ऐसा 'मोदी इफेक्ट' की वजह से तो नहीं हो रहा, क्योंकि हाल तक आम आदमी पार्टी सिर्फ भ्रष्टाचार पर फोकस कर रही थी। दिल्ली चुनावों में ऐसा खास तौर पर देखा गया। इसकी सफाई में आम आदमी पार्टी के संयोजक ने कहा, "नहीं ऐसा नहीं है। दरअसल, दिल्ली में यह कोई मुद्दा नहीं था।" केजरीवाल खुद कह रहे हैं कि कांग्रेस में कोई ताकत नहीं बची है और आम आदमी पार्टी उससे ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब रहेगी।
जाहिर है, केजरीवाल अब नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली भाजपा पर हमले तेज कर रही है और बीते कुछ दिनों में सामने आए हमले इसी रणनीति की ओर इशारा कर रहे हैं। चुनाव करीब आते-आते इस तरह के हमलों की रफ्तार और तीखेपन, दोनों में इजाफा होने की उम्मीद है।