क्या पत्रकारो को नागरिक श्रेणी का दर्जा दिया जाता हैं?
सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया:- हम यह भी नहीं कहते हैं कि पत्रकार नागरिक श्रेणी में क्यों नहीं आते हैं, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पत्रकार को नागरिक क्यों नहीं माना जाता है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पत्रकार को सूचना लेने का क्यों अधिकार नहीं है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि सूचना प्राप्त करने वाला पत्रकार किस तरह क्यों दुरूपयोग करेगा, हम यह भी नहीं कहते हैं कि इस बात की क्या गारन्टी हैं कि पत्रकार सूचनाओं का दुरूपयोग करता है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि आज दिन तक पत्रकार पर सूचनाओं के दुरूपयोग करने का अरोप लगा हो, हम यह भी नहीं कहते हैं कि जब सूचना ही नही दि जाएं तो कैसे कह सकते है कि उसका गलत इस्तेमाल हो रहा है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पत्रकार कम रिपोर्टर और संवाददाता में कोई अन्तर क्यों नहीं समझता हैं, हम यह भी नहीं कहते हैं कि चलो पत्रकार की छोडो इस बात की क्या गारन्टी की नागरिक समाज द्वारा चाहीं गई सूचनाओं का दुरूपयोग नहीं करेगा, हम यह भी नहीं कहते हैं कि रिपोर्टर और संवाददाता का काम ही नागरिक समाज को सूचनाओं को पहुंचाना ही पत्रकारिता का धर्म हैं, हम यह भी नहीं कहते हैं कि नए जमाने की पत्रकारिता में परम्परागत के साथ अन्य फील्ड को तवज्जू के साथ - साथ नागरिक पत्रकार और नागरिक पत्रकारिता के नित नएं प्रयोग क्या पत्रकारिता नहीं हैं।
हम यह भी नहीं कहते हैं कि आज कल मनोविज्ञान या उससे जुडे. समाचारों को प्रिंट मीडिया या प्रेस जगत { पे्रस जगत का चलन धीरे - धीरे खत्म उसके स्थान पर मीडिया का चलन अस्थित्व में हैं } उसमें और चैलनों में स्थान मिलने लगा है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि क्या ऐस बदलाओं का नोटिस क्यों नहीं लेना चाहिए, हम यह भी नहीं कहते हैं कि उक्त लेख को भटका रहा हूं या यह लेख भटका हुआ क्यों लगता हैं, हम यह भी नहीं कहते हैं कि विषय से विषयान्तर क्यों नहीं हो रहा हूं, हम यह भी नहीं कहते हैं कि प्रसंगवश विषय से विषयान्तर होना कोई गुनाह हैं। हम यह भी नहीं कहते हैं कि जब नौकरशाही किसी मामले का कोई माकूल जवाब नहीं देना चाहें तो ऐसे ‘ जुमलों का इस्तेमाल करते हैं कि वह तो नागरिक श्रेणी में नहीं आता हैं अत: मेरे विनम्र मत में चूंकि वो नागरिक ही नहीं हैं तो उसे सूचनाधिकार किस बात का, देट सोल राइट कह कर बात आयी गई कर देते है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि जब रिपोर्टर और संवाददाता जैसे सम्मानित लोगों को कोई तवज्जू नही तो फिर नागरिक समाज किस खेत की मूली हैं।
ऐसा वाकया का एक प्रहसन इस प्रकार हैं कि यह मामला राजस्थान के जिला हनुमानगढ कार्यालय प्रमुख चिकित्सा अधिकारी एमजीएम राज. चिकित्सालय हनुमानगढ के लोक सूचना अधिकारी द्वारा निवासी वार्ड न. 17 मंडी पीलीबंगा जिला हनुमानगढ पत्रकार अजयपाल मित्तल को चाही गई सूचना नहीं देने का बहाना यह बनाते हुए जवाब में लिखा गया कि चंूकि सूचना का अधिकार 2005 के तहत स्वयं द्वारा चाहीं गई हैं। आप पत्रकार हैं। सूचना आयोग द्वारा अधिनियम की धारा 3 के अनुसार पत्रकार को नागरिक नहीं माना है। मेरी राय में आप नागरिक की श्रेणी नहीं आते हैं। अत: आपका आवेदन निस्तारित किया जाता है। उक्त वाकया का प्रहसन हैं ना मजेदार। जब कोई जवाब ही नही देना हो तो ऐसे बहाने बाजी का सहारा लेने में नौकरशाही पीछें नहीं रहती है। इसके अलावा कानून का उन्हें कितना ज्ञान है। यह इस एक घ्ाटना का उद्धाहरण से साबित हो जाता है। वाकया के प्रहसन का तब्सिरा यह हैं कि यह तो राजस्थान के संवाददाता का मामला प्रकाश में आ गया है। लेकिन प्रेस जगत या इलेक्टोंनिक मीडिया में इस की कोई खबर नहीं बन सकी। यह तो अपना - अपना नजरिया है। जो बिकता हैं वो खबर बनता हैं।
इस घटना से किसी को कोई लाभ नहीं, जहां मुनाफा नहीं वहां व्यर्थ क्यों समय बरबाद किया जाएं। परन्तु एक बात तो इस वाकया का तो नोटिस अवश्य लेना चाहिए। खैर, छोडिगा इन बातों को। सूचना के अधिकार के अन्र्तगत पत्रकार नागरिक की श्रेणी में नहीं आना, अब सवाल उठता हैं कि धारा - 3 हैं क्या बला, क्या ऐसा कोई वाक्यांश लिखा गया है। हमने धारा - 3 को देखा, पढा और कई वकीलों से विचार - विमर्श करने के बाद यह बात स्पष्ट हो गई कि ऐसा कोई उल्लेख नहीं किया गया कि पत्रकार नागरिक की श्रेणी में नहीं आता हैं । फिर क्यों उक्त प्रकरण में लोक सूचनाधिकारी ने संवाददाता को गुमहरा किया ? यह यक्ष प्रश्न आज दिन तक अनुत्तरित ही है। उचाधिकारी क्या नोटिस लेते हैं या फिर वाकया प्रहसन आया गया कर दिया जाएगा। जब संवाददाता को यह जवाब दे सकते है तो नागरिक समाज की बिसात ही क्या है?