लोकसभा चुनाव 2019 के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को गठबंधन को हिस्सा बनाने के लिए नए सिरे से कवायद की है. सपा-बसपा ने 2 सीटों के बजाय 9 सीटों का ऑफर कांग्रेस के सामने रखा, लेकिन इस पर बात नहीं बनी है. प्रियंका गांधी के राजनीति में कदम रखने से पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं के हौसले बुलंद है. ऐसे में कांग्रेस सूबे में किसी पार्टी से अपने आपको कमतर नहीं रखना चाहती है. कांग्रेस 9 सीटों के बजाय सपा-बसपा के बराबर सीटों के ऑफर पर ही गठबंधन में शामिल होने की संभावना बन सकती है.
सूबे में अखिलेश यादव और मायावती ने गठबंधन का ऐलान करते समय कांग्रेस को दरकिनार कर दिया था. लेकिन प्रियंका गांधी के राजनीति में आते ही उत्तर प्रदेश का सियासी समीकरण बदल गए हैं. सूबे में सपा-बसपा के नेताओं ने कांग्रेस के दामन थामने का सिलसिला लगातार जारी है. सपा-बसपा गठबंधन के तहत कई सीटें के सपा के खाते में गई हैं, उन सीटों के बसपा नेता कांग्रेस मे शामिल हो रहे हैं. ऐसे ही जो सीटें बसपा के खाते में गई हैं, वहां के सपा नेता अपना राजनीतिक वजूद बचाने के लिए कांग्रेस का रुख कर रहे हैं.
फतेहपुर लोकसभा सीट से सपा के पूर्व सांसद राकेश सचान तैयारी कर रहे थे, लेकिन गठबंधन के सीट शेयरिंग के तहत ये सीट बसप के खाते में चली गई है. ऐसे में अपने राजनीतिक वजूद को बचाए रखने के लिए राकेश सचान ने कांग्रेस का दामन थाम लिया है. ऐसे ही सीतापुर से बसपा की पूर्व सांसद कैसर चुनावी लड़ने की पूरी तैयारी कर रही थीं, लेकिन मायावती ने इस सीट से नकुल दूबे को प्रत्याशी बना दिया है. ऐसे में कैसर जहां भी कांग्रेस में शामिल हो गई हैं. इसके अलावा बहराइच सुरक्षित सीट से बीजेपी की बागी सांसद सावित्री बाई फूले ने भी कांग्रेस का थाम लिया है.
सूत्रों की मानें तो यही वजह है कि सपा-बसपा गठबंधन कांग्रेस को भी हिस्सा बनाने की पुरजोर कोशिश कर रहा है. लेकिन राजनीतिक मिजाज को समझते हुए कांग्रेस सपा-सपा के ऑफर पर नहीं बल्कि अपनी शर्तों पर गठबंधन का हिस्सा बनना चाहती है. सपा-बसपा ने सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस को 9 सीटों का ऑफर दे दिया है, लेकिन अब पार्टी ने सीटों की डिमांड बढ़ा दी है. सूबे में सपा-बसपा और कांग्रेस के बीच सीट शेयरिंग का नया फॉर्मूला तय हो और तीनों पार्टियां बराबर सीटों पर चुनावी मैदान में उतरें. कांग्रेस 9 की बजाय 25 सीटों की मांग रही है.
दरअसल, कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि 2014 के चुनाव में कांग्रेस को 2 सीटें मिली थी. जबकि बसपा को एक भी सीट नहीं मिली है. इस आधार पर अगर सीट शेयरिंग होती है तो भी कांग्रेस को बसपा के कम सीटें नहीं मिलना चाहिए. वहीं, अगर 2009 के लोकसभा चुनाव के आधार पर सीट बंटवारे होते हैं तो कांग्रेस को भी कम से कम 25 सीटें मिलनी चाहिए. हालांकि कांग्रेस के इस डिमांड पर सपा-बसपा सहमत नहीं हैं.
बता दें कि प्रियंका गांधी को पूर्वांचल की कमान सौंपे जाने के बाद कांग्रेस में एक नया जोश नजर आ रहा है. प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के पुराने दिग्गजों को दोबारा से पार्टी में वापस लाने की पहल की है. इसके अलावा जातीय समीकरण साधने में भी कांग्रेस जुटी है. सपा का परंपरागत मुस्लिम वोट बैंक भी प्रियंका के चलते कांग्रेस की ओर झुकाव तेजी से दिखाई दे रहा है. कांग्रेस को 2009 जैसे नतीजों की उम्मीद यूपी से नजर आ रही है.
दिलचस्प बात ये है कि 2009 में कांग्रेस और सपा के बीच गठबंधन की बात चली थी, लेकिन मुलायम सिंह यादव 12 से 15 सीटों ही देना चाहते है. जबकि कांग्रेस 20 से 25 सीटें मांग रही थी. ऐसे में दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं हो सका. इसके बाद लोकसभा चुनाव हुए और कांग्रेस सूबे में 22 सीटें जीतकर पहले नंबर पर रही. खास बात ये रही है कि इनमें ज्यादातर सीटें पूर्वांचल से जीत मिली थी. ऐसे में प्रियंका गांधी के जरिए कांग्रेस एक बार फिर इसी इलाके में अपनी जबरदस्त वापसी करना चाहती है.
बता दें कि लोकसभा चुनाव 2019 के लिए यूपी में सपा-बसपा ने गठबंधन है. सूबे की 80 लोकसभा सीटों में से सपा 37 सीटों और बसपा ने 38 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी. इसके अलावा अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (RLD) के लिए 3 सीटें छोड़ी हैं. जबकि अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस के खिलाफ गठबंधन ने उम्मीदवार न उतारने का फैसला किया है.