जापान के टोक्यो में 35 वर्षीय स्कूल एडमिनिस्ट्रेटर अकिहिको कोंडो ने नवंबर में शादी रचाई थी लेकिन उनकी मां इस शादी में मौजूद नहीं थीं. उनकी मां के लिए यह कोई जश्न की बात नहीं थी. वजह साफ थी- अकिहिको ने एक होलोग्राम से शादी की थी. कोंडा ने इस बात पर जोर देते हुए कहा था, यह कोई स्टंट नहीं था बल्कि कई सालों बाद गीक महिलाओं से मिलकर थकने के बाद होलोग्राम से उन्हें सच्चा प्यार हुआ. वह खुद को एक सेक्सुअल माइनॉरिटी समझते हैं.
कोंडो कहते हैं, उन पर इंसानों की तरफ आकर्षित होने का दबाव डालना ऐसा ही है, जैसे किसी गे से किसी महिला को डेट करने के लिए कहना.
न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ऐसे लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है जो खुद की पहचान डिजिसेक्सुअल के तौर पर कर रहे हैं. डिजिसेक्सुअल यानी जो लोग रियल लोगों के बजाय रोबोट और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की तरफ आकर्षित होते हैं.
हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां रोबोटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस में तेजी से विकास हो रहा है, वहीं दूसरी तरफ लोगों की सेक्सुअल पहचान का दायरा भी बढ़ता जा रहा है. एक तरफ जीते-जागते इंसान बनावटी तौर पर भावनात्मक और सेक्सुअल रिश्ते बना रहे हैं, तो दूसरी तरफ डिजिटल डिवाइस साइंस-फिक्शन मूवी से निकलकर हाड़-मांस के बने इंसानों जैसे रियल हो चुके हैं.
कुछ लोग अपनी पहचान पॉलीमॉरस के तौर पर करते हैं तो कुछ डेमीसेक्सुअल के तौर पर. डेमीसेक्सुअल वे लोग होते हैं जो केवल बेहद भावनात्मक रिश्ते में ही यौन संबंध बनाने की चाह महसूस करते हैं. कुछ लोग अपनी पहचान एरोमैटिक के तौर पर पहचान करते हैं- ऐसे लोग जिनमें रोमांस की इच्छआ नहीं होती है. यानी अब सेक्सुअल आइडेंटिटी का दायरा पहले के मुकाबले बहुत बड़ा हो चुका है.
रियल लाइफ में मानव और तकनीक के बीच के रोमांस को भी अब एक नाम दिया जा चुका है- डिजिसेक्सुअल्स.
2016 में लिली नाम की एक फ्रेंच महिला ने मीडिया से बातचीत में बताया था- 'मैं केवल रोबोट की तरफ ही आकर्षित हूं. दो पुरुषों के साथ रिलेशनशिप में रहने के बाद मुझे अपना लव ओरिएंटशन पता चल गया क्योंकि मुझे इंसानों से शारीरिक संपर्क बनाना अच्छा नहीं लगता था.'
2017 में एक अच्छी पत्नी की तलाश में असफल होने पर चीन में झेंग जिजिया नाम के एक इंजीनियर ने अपने ही बनाए हुए एक रोबोट से शादी कर ली थी. यिनग्यिंग नाम की यह रोबोट कुछ आसान से शब्द भी बोल सकती है.
'यूनिवर्सिटी ऑफ मनीटोबा' में फिलॉसफी के एसोसिएट प्रोफेसर नील मैकऑर्थर और 'यूनिवर्सिटी ऑफ विस्कन्सिन-स्टाउट' में ह्यूमन डिवलपमेंट ऐंड फैमिली स्टडीज के प्रोफेसर मार्की ट्विस्ट ने पिछले साल 'द राइज ऑफ डिजिसेक्सुअलिटी' शीर्षक से एक पेपर प्रकाशित किया था जिस पर खूब चर्चा हुई थी.
लेखकों ने डिजिसेक्सुअलिटी को दो कैटिगरी में बांटा था- ऑनलाइन पॉर्नग्राफी, हूकअप ऐप्स, सेक्सटिंग, इलेक्ट्रॉनिक टॉय्ज...जहां यौन संतुष्टि के लिए तकनीक एक जरिया था और दूसरी कैटिगरी जिसमें वर्चुअल रियलिटी और रोबोट जैसी चीजों के प्रति आकर्षित होने वाले लोग जिसमें कई बार लोगों की रियल लाइफ पार्टनर की जरूरत ही नहीं होती है.
डॉ. टिवस्ट कहते हैं, उनके कई मरीजों में दूसरी कैटिगरी के डिजिसेक्सुअल्स शामिल हैं जिनकी उम्र 20 से 30 के बीच में है. वह कहते हैं, जब भी कोई नई तकनीक आती है, उसके साथ ही एक चेतावनी भी आती है. पहले यह पॉर्नोग्राफी के साथ हुआ, फिर इंटरनेट डेटिंग और फिर स्नैपचैट सेक्सटिंग के साथ. एक के बाद एक ये तकनीकें आती गईं और उसके साथ ही चिंता की एक लहर भी. लेकिन जैसे ही लोगों ने इन तकनीकों का इस्तेमाल करना शुरू किया, वे हमारी जिंदगियों का हिस्सा बनते चले गए.
कैलिफोर्निया की कंपनी एबिस क्रिएशन ऐसे फीमेल रोबोट बना रही है जिसमें चेहरे स्वैप किए जा सकते हैं. आर्टिफिशयल इंटेलिजेंस से लैस ब्रेन इन डॉल्स को आंख मारने, चैट करने और धीमी आवाज में फुसफुसाने में भी सक्षम बनाता है.
कंपनी के फाउंडर मैट मैकमुलेन का कहना है कि ये रोबोट केवल यौन संतुष्टि के लिए नहीं बल्कि साथ की तलाश पूरी करने के लिए भी हैं, यौन संतुष्टि केवल एक घटक है. मैकमुलन कहते हैं, जो लोग काम से थककर आते हैं और घर खाली पाते हैं, उनके लिए ये एक खास तरह का अनुभव है. एकाकी से परेशान लोग उसके लिए फूल खरीद कर ला सकते हैं या फिर डॉल के साथ एक मॉक डिनर कर सकते हैं.
जो लोग इन डॉल्स की कीमत वहन नहीं कर सकते हैं, उनके लिए वेश्यालयों का रोबोटिक वर्जन बना दिया गया है. उदाहरण के तौर पर, मॉस्को में एक रोबोट ब्रोदल है जिसमें सेक्सबॉट के साथ 30 मिनट समय बिताने के लिए 90 डॉलर चुकाने पड़ते हैं.
तकनीक की हर नई फसल के साथ साइबरसेक्स और रियलसेक्स के बीच की लाइन धुंधली होती जा रही है. मिस्टर कोल कहते हैं, आने वाले समय में डिजिसेक्सुअल शब्द की प्रासंगिकता ही खत्म हो जाएगी क्योंकि भविष्य में लोगों की ऑनलाइन और ऑफलाइन जिंदगी में कोई फर्क नहीं रह जाएगा. हो सकता है कि उन्हें क्लास में सेक्स एजुकेशन चैटबॉट्स के बारे में पढ़ाया जाए या फिर वे यूनिवर्सिटी में वीआर क्रिएटेड दुनिया में रोमांस करें या फिर होलोग्राम में ही वे अपना पार्टनर ढूंढने लगे. ये सब कुछ दिनों बाद बिल्कुल सामान्य हो जाएगा.
डॉ. टिवस्ट ने न्यू यॉर्क टाइम्स से बातचीत में कहा, 'कई रिसर्च से यह साफ हुआ है कि लोग निर्जीव वस्तुओं के साथ भी यौन संतुष्टि हासिल कर सकते हैं. हम पहले ही देख चुके हैं कि लोग अपनी टेक डिवाइसेस से अलग होने पर बेचैनी महसूस करने लगते हैं. मुझे लगता है कि यह बहुत आसानी से संभव है कि लोग तकनीक में ही अपना असली प्यार ढूंढने लगे. लोग पहले ही अपनी कारों और अपनी करीबी चीजों को प्यारे नाम देने लगे हैं.'
कुछ लोग सेक्सबॉट को सेक्स स्लेव के ही एक रूप में देख रहे हैं, वहीं कुछ इसे सेक्सुअल आजादी का जरिया मान रहे हैं.
सेर्गी सैंटोज नाम के स्पैनिश रोबोटिसिस्ट ने बताया था कि 2500 डॉलर के एक रोबोट की मदद से उनकी शादी और मजबूत हुई है. वह कहते हैं, 'एक पुरुष यही चाहता है कि वह अपनी पत्नी के साथ संबंध तभी बनाए जब उसकी सहमति हो.'
आखिर डिजिसेक्सुअल लोगों की संख्या क्यों बढ़ रही है? एक्सपर्ट कहते हैं, डिजिटल सेक्सुअलिटी लोगों की पहचान छिपाए रखती है और उन्हें अपने बारे में किसी तरह की राय बनने का खतरा नहीं होता है जबकि फिजिकल वर्ल्ड में ऐसा नहीं है. असल जिंदगी में अपनी पसंद के बारे में खुलकर बात करने पर लोग आपको जज करने लगते हैं.
ऑस्ट्रियन टेक्नॉलजी फेयर में जब डॉ. सैन्टोज समन्था की एक डॉल को मिट्टी में गिरा दिया तो उसने जवाब दिया था. डॉ. सैन्टोज अब समन्था के नए वर्जन पर काम कर रहे हैं जो किसी शख्स के हिंसक होने पर काम करना बंद कर देगी.
वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि बार्बी बॉडी वाली इन डॉल्स की वजह से महिलाओं को एक वस्तु के तौर पर पेश करने की मानसिकता बढ़ेगी. लोगों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ जाएगी. कई कैंपेन ग्रुप इसके खिलाफ कैंपेन भी चला रहे हैं.
कुछ दिनों पहले फ्रिजिड फराह नाम की डॉल पर भी खूब विवाद हुआ था. फ्रिजिड फराह को जब कोई छूता था तो यह ना कहती थी. एवरीडे सेक्सिजम प्रोजेक्ट की फाउंडर लॉरा बेट्स ने न्यू यॉर्क टाइम्स में लिखा था, 'यह धारणा कि सेक्स रोबोट से रेप में कमी आएगी, बिल्कुल गलत है. रेप सेक्सुअल पैशन का ऐक्ट नहीं है, यह एक हिंसक अपराध है. हमें बलात्कारियों को प्रोत्साहित करते हुए एक सुरक्षित विकल्प नहीं उपलब्ध कराना चाहिए. अगर ऐसा ही है तो फिर हत्यारों को खून से भरी डमीज देनी चाहिए ताकि वे उनको चाकू भोंक सकें.'