दिवाली की रात से राजधानी दिल्ली की हवा और जहरीली हो गई है। जानकारी के मुताबिक, दिवाली की रात एक बजे के आसपास प्रदूषण के सबसे खतरनाक कण पीएम 2.5 का स्तर कई जगहों पर 2500 तक पहुंच गया, जबकि इसे 60 से ज्यादा नहीं होना चाहिए। दिल्ली में शुक्रवार सुबह एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) को लेकर आपात स्थिति है।
अस्पतालों को अलर्ट जारी
इस बिगड़ते हालात से अस्पतालों में अस्थमा से पीड़ित मरीज पहुंच रहे हैं। उनकी सांस की गति इतनी तेज होती है कि उन्हें नेबुलाइज करने की जरूरत पड़ रही है। कई लोगों को वेंटिलेटर की भी सुविधा देनी पड़ रही है। दिल्ली के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय ने भी अस्पतालों को निर्देश जारी कर कहा है कि मौजूदा हालात में दिल्लीवासियों को नेबुलाइज करने की दरकार अधिक हो सकती है, इसलिए सभी अस्पताल दवाओं की और नेबुलाइजर की उपलब्धता सुनिश्चित करें।
महानिदेशालय ने अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचे सांस के मरीजों की जानकारी भी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया है। खासतौर पर इमरजेंसी, मेडिसिन ओपीडी व बच्चों की ओपीडी में कितने मरीज पहुंच रहे हैं और उनमें कितने सांस की बीमारी से पीड़ित होते हैं? इसकी जानकारी उपलब्ध कराने का निर्देश दिया गया है।
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के महानिदेशक डॉ. कीर्ति भूषण ने बताया कि प्रदूषण होने पर एलर्जी, सांस व हृदय संबंधित बीमारी बढ़ जाती है। सांस के मरीजों को नेबुलाइज करने की जरूरत पड़ती है, इसलिए अस्पतालों को नेबुलाइज, दवा व वेंटिलेटर की पर्याप्त व्यवस्था रखने का निर्देश दिया गया है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के पल्मोनरी मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. करण मदान ने बताया कि अस्पताल में 25-30 फीसद सांस के मरीज बढ़ गए हैं। कुछ दिनों से अस्थमा के गंभीर अटैक से पीड़ित मरीज भी पहुंच रहे हैं। कई मरीज भर्ती भी किए गए हैं। प्रदूषण के चलते ऐसे मरीजों में सांस की गति बहुत बढ़ जाती है। सांस की बीमारी से पीड़ित पुराने मरीज अधिक आ रहे हैं, उनकी दवाएं बढ़ानी पड़ रही हैं। ऐसे लोग भी पहुंच रहे हैं, जिन्हें पहले सांस की बीमारी नहीं थी, लेकिन प्रदूषण के कारण वे परेशान हो रहे हैं। लोग आंखों में जलन की शिकायत भी कर रहे हैं।
गंगाराम अस्पताल में भी बढ़े मरीज
गंगाराम अस्पताल के चेस्ट मेडिसिन के विशेषज्ञ डॉ. अरूप बसु ने बताया कि प्रदूषण के कारण ओपीडी में पहले से ही मरीज 20-25 फीसद बढ़ गए थे। दिवाली की रात प्रदूषण बढ़ने के बाद 10-15 फीसद मरीज और बढ़ गए हैं। यदि हवा का यही रुख रहा तो कुछ दिनों में हालात और बिगड़ेंगे।
वातावरण में मौजूद पर्टिकुलेट मैटर (पीएम)-10, पीएम 2.5 कण व जहरीली गैसें सांस के जरिये फेफड़े में प्रवेश करती हैं। इससे सांस की नली व फेफड़े में संक्रमण होता है, इसलिए सांस की नली में सूजन होने से सांस लेने में परेशानी होती है। पीएम 2.5 और उससे छोटे कणों के फेफड़े के जरिये रक्त में पहुंचने का खतरा रहता है। इससे हार्ट अटैक की आशंका रहती है।