सभी केंद्र शासित प्रदेशों के मुकाबले दिल्ली में इस वक्त भिखारियों की तादाद सबसे ज्यादा है। पिछली जनगणना के मुताबिक दिल्ली में पंजीकृत कुल 2,187 भिखारी थे। पर उसके बाद से इनकी संख्या में लगातर इजाफा होता जा रहा है। आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं कि राजधानी दिल्ली में इस समय हर प्रांत के भिखारियों की मौजूदगी है। रोजाना इनकी बढ़ती संख्या से सरकार के अलावा दूसरे वगोर्ं को भी चिंतित कर दिया है। यही वजह है कि इनको खदेड़ने के लिए सालों से प्रयास किए जा रहे हैं। इन पर आरोप लगता है कि ये लोग दिल्ली की खुबसूरती को बदनुमा करते हैं, क्योंकि दिल्ली में विदेशी नेताओं व दूसरे अतिमहत्वपूर्ण मेहमानों का आना-जाना लगा रहता है।
इन्हीं बातों को केंद्रित करते हुए पिछले दिनों राजधानी को भिखारी मुक्त करने के मकसद से दो सामाजिक कार्यकताओं ने कोर्ट में याचिका दायर की। याचिका पर दिल्ली हाइ कोर्ट ने मानवीय पहल करते हुए राजधानी में भीख मांग कर जीवन बसर करने वालों को बड़ी राहत दी है। दरअसल अदालत ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी में न रखते हुए याचिका के खिलाफ और भिखारियों के पक्ष में फैसला सुना दिया। अदालत के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में भीख मांगना अपराध नहीं समझा जाएगा। यानी अब भिखारी धड़ल्ले से बिना किसी रोक-टोक के भीख मांग सकते हैं।
याचिकाकर्ताओं ने विशेषकर दिल्ली में भिखारियों के लिए मूलभूत मानवीय और मौलिक अधिकार मुहैया कराए जाने का अनुरोध किया गया था। हालांकि उनकी चिंता इसलिए वाजिब कही जाएगी, क्योंकि कई बार भिखारियों ने गुप-चुप तरीके से कई छोटे-बड़े अपराधों को अंजाम दिया है। दिल्ली के हनुमान मंदिर के पास भिखारियों का हमेशा जमावड़ा लगा रहता है। उन्होंने कई बार वहां से गुजरने वाले राहगीरों व चलते वाहनों को निशाना बनाया। रेड लाइटों पर भीख न देने पर भिखारी कई बार हमलावार भी हो जाते हैं। इन सभी घटनाओं की याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में उदाहरण के तौर पर दलील दी, लेकिन अदालत ने उनकी दलीलों को ठुकरा दिया है। दिल्ली हाई कोर्ट की कार्यवाहक चीफ जस्टिस गीता मित्तल और जस्टिस हरिशंकर की खंडपीठ ने भीख मांगने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का फैसला देकर भिखारियों को दिल्ली में भीख मांगने की इजाजत दे दी।
तसल्ली देने के लिए खंडपीठ ने कहा कि भीख मांगने पर सजा देने का प्रावधान असंवैधानिक है। हालांकि भूखे को रोटी नहीं देने की वकालत नहीं की जा सकती लेकिन बिना मेहनत किए रोटी तोड़ने की वकालत भी नहीं करनी चाहिए। इन दिनों देखा जा रहा है कि कुछ भले-चंगे इंसानों ने भिखारियों के रूप में भीख मांगने को पेशा बना लिया है। खैर, मानवता को जिंदा रखने के लिए समाज में रहने का अधिकार हर वर्ग को है। अगर कोई इंसान भूखा है और यदि वह भीख मांगकर पेट भरता है, तो इसे गुनाह नहीं कहा जाएगा। कानून के मुताबिक प्रत्येक इंसान को राइट टू स्पीच के तहत रोटी मांगने का अधिकार है। पहले के कानून के मुताबिक भीख मांगते हुए अगर कोई व्यक्ति पकड़ा जाता है तो उसे एक से तीन साल की सजा का प्रावधान था, जिसे अब अदालत ने इसे खत्म कर दिया।
कोर्ट ने दिल्ली सरकार को एक सुझाव दिया है कि इसके लिए वह अलग से कोई व्यवस्था या प्रावधान कर सकती है। भिखारियों की समस्या से दिल्ली ही नहीं, अन्य राज्यों की सरकारें भी परेशान हैं। भिखारियों के संबंध में मामला संसद में भी गूंज चुका है। इस मसले पर विपक्ष के विरोध पर सामाजिक न्याय मंत्री थावर चंद गहलोत को लोकसभा में आंकड़े बताने पड़े। केंद्र सरकार के करीब चार साल पहले बताए गए आंकड़ों के मुताबिक पूरे देश में पंजीकृत भिखारियों की संख्या पांच थी, लेकिन वर्तमान संख्या इससे कहीं ज्यादा है। मौजूदा समय में पुरुष भिखारियों के मुकाबले महिला और बच्चों की सख्या तेजी से बढ़ रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस समय 1,91,997 महिला भिखारी देशभर में विभिन्न जगहों पर भीख मांग रही हैं। हालांकि बच्चों के संबंध में सटीक संख्या नहीं बताई गई है।
भिखारियों को लेकर पश्चिम बंगाल सबसे ज्यादा आहत है। यहां सबसे ज्यादा 81,244 हजार भिखारी भीख मांगते हैं। दूसरे स्थान पर उत्तर प्रदेश आता है जहां 65,835 भिखारी हैं। भिखारियों से बढ़ती संख्याओं से दूसरे राज्य भी अछूते नहीं हैं। इस मामले में बिहार तीसरे स्थान पर आता है जहां कुल 29,723 भिखारी हैं। इसके अलावा आंध्र प्रदेश में 30,218 भिखारी बताए गए हैं। पूवरेत्तर के राज्यों की बात करें तो सिक्किम में 68, अरुणाचल प्रदेश में 114, नागालैंड में 124, मणिपुर में 263, मिजोरम में 53, त्रिपुरा में 1,490, मेघालय में 396 और असम में 22,116 भिखारियों की संख्या बताई गई है। ये सभी सरकारी आंकड़े हैं लेकिन मौजूदा यथास्थिति इन आंकड़ों की चुगली अलग से करती है। चिंता इस बात की है कि भिखारियों पर अदालत का रहम भरा यह फैसला कहीं गलत साबित न हो। अपने पक्ष में आए इस फैसले को कहीं ये लोग अपनी संख्या बढ़ाने का लाइसेंस न समझ लें।
इस तरह की काफी चिंताए हैं। इतना ही नहीं, भिखारियों द्वारा अब यदि किसी बड़ी घटना को अंजाम दिया जाता है तो निश्चित रूप से इसे अदालत का जल्दबाजी में लिया गया फैसला कहा जाएगा। 1दरअसल भिखारियों को मुफ्त की रोटी तोड़ने की आदत सी पड़ जाती है। उनको इसी से छुटकारा दिलवाने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए सरकारी और सामाजिक अभियान चलाने की दरकार है। कुछ भिखारी हट्टे-कट्टे होने के बावजूद भीख मांगते हैं। ऐसे लोगों को आत्मनिर्भरता के रास्ते पर लाने की जरूरत है। बाकी शरीर से अपंग और असहाय लोगों को सुधार गृहों में भेजने की जरूरत है। लेकिन यह सब सामूहिक प्रयासों से संभव होगा, सिर्फ सरकारी प्रयास से ही यह सब मुमकिन नहीं। इसके लिए सबको आगे आना होगा।