बेघर मानसिक विकलांगों को क्यों है मनोचिकित्सा की दरकार?
सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया:- देश के किसी भी कोने में चले जाइए ऐसे बेघर नागरिक समाज के प्रभुओं को देखा जा सकता है जो काले कलुटे मैले कुचले कपड़े पहने हुए बढ़ी हुई दाढ़ी के साथ सभी उम्र के लोगों स्त्री - पुरूष कों बस स्टैंड प्रमुख चौराहों पर इधर - उधर मुँह से तरह - तरह की आवाजें निकालना, तरह - तरह से मुँह बनाना, हाथ - पैर हिलाते रहना, ताली बजाना आदि - इत्यादि हरकते करते हुए दिखाई दे जाएगें। कभी कभार उनको राह चलते वाहनों के आगे पीछे बीच में कहने का मतलब कहीं पर भी विचित्र हरकतें करते हुए मिल जाएंगे।
ऐसे पीड़ित व्यक्तियों का मन प्राय: किसी भी काम में नहीं लगता, ऐसी होती है इनकी मनोदशा । ऊपरी तौर पर देखने पर उपर्युक्त वर्णित लक्षणों में इनका मन प्रति क्षण बदल जाता है। इसी बात को कभी आपने - हमने इस वाकया हरकत का नोटिस नहीं लिया। उनके मनोजन्य संसार को जानने की कभी कोशिश ही नहीं की है। बल्कि ऐसे प्रभुओं को हिकारत - नफरत की दृष्टि से देखते आए है। ऐसे नागरिकों के मनोजन्य समस्या को मनोविज्ञान की परिभाषा में मनोचिकित्सीय समस्या के नाम से जाना जाता है। बेघर मानसिक विकलांग समाज में क लंक नहीं है, बल्कि उनके मनोजन्य समस्याओं का समाधान आज के युग में संभव है। ऐसे लोगों को सहानुभूति और करूणा की दरकार है। जो उन्हें कही से नहीं मिल पाती उलटे उन्हें दुत्कारा जाता है, सो अलग बात है।
उपर्युक्त वाकया हरकत करने वाले ऐसे महानुभाव यह भूले हुए होते हंै कि मैं कौन हँू ? अरे, कहां आ गया कहने का मतलब यह एक अनोखी दुनिया में खोए हुए विचित्र किन्तु सत्य आश्चर्यचकित कर देने वाली हरकतों वाली मनों दशा के मनोजगत में खोए रहते और अकेले ही रहना पसन्द करते है । मनोचिकित्सक भाषा में मन मस्तिष्क और मन:स्थिति संबंधी मनोव्यवहारो का अध्ययन के अन्तर्गत ऐसे वाकया हरकतों कों मानसिक रोग डिमेंशिया और उसी का एक प्रकार अल्जाइमर का रोग होता है । ऐसे लोग इलाज के द्वारा अच्छा जीवन जी सकते है बशर्ते ऐसे बेघरबार वाले मानसिकरोगियों - प्रभुओं को मनोचिकित्सकों के पास ले जाने की आवश्यकता है । इलाज से पुन: समान्य जीवन जी सकते है।
इहबास के मनोचिकित्सक और ऐसोसिएट प्राफेसर डॉ. ओमप्रकाश का कहना है कि दिल्लीप्रदेश के नॉर्थ - ईस्ट क्षेत्रों में ऐसे लोग मिल जाएंगे जिनका इलाज के जरिए वो सामान्य जीवन हीं नहीं बल्कि अपने परिवारजनों में शामिल होकर खुशहाल जीवन की प्राप्ति की जा सकती है । वैसे हर वर्ष 21 सितम्बर को विश्व अल्जाइमर्स दिवस मनाया जाता और नागरिक समाज में भूलने जैसी मानसिक बीमारियों का इलाज हर हाल में संभव है। बेसहारा, बेघर,असहाय, बीमार स्थिति में कही पर पड़े तड़प रहे हों ऐसे मनोरोगी महिला या पुरूष और हर उम्र के लोगों की सुध अपना घर अपना आश्रम इस दिशा में कार्यरत है।
उस के प्रमुख महेन्द्र भड़ेच का कहना है कि अपना घर पुरूष आश्रम बवानारोड, पूठखुर्द सहित राजस्थानप्रदेश के भरतपुर, अजमेर, कोटा, जोधपुर अलवर, बीकानेर,कोकिलावन और श्री गंगानगर कार्यरत हंै जिसमें 1800 े प्रभुस्वरूप मनोरोगी बेसहारा लोगों की मय इलाज के साथ देख रेख की जा रहीं है। इसके अलावा गत 16 नवं. को जीटीबी करनाल रोड अरिहन्त - मार्गी जैन महासंघ, बुढ़पुर, अलीपुर नव - निर्मित अपना घर अपना आश्रम प्रभुस्वरूप महिलाओं के लिए इस भवन की आवासीय क्षमता 200 बैड की है जिसमे मनोरोगी असहाय,सभी प्रकार के केवल महिलाओं का मय इलाज के आवासीय व्यस्था की गई है । बशर्ते उन्हें अपना घर तक पहुचाने की दरकार है।देश में डिमेंशिया और अल्जाइमर से ग्रसित भंयकर मनोरोगी मानसवृत्ति के नागरिक समाज को करूणा,प्रेम और सहानुभूति के साथ - साथ ऐसे बेघरबार वालों मानसिक विकलांगों की इस लिए मनोचिकित्सक और मनोचकित्सा की दरकार है
ये लेखक के अपने विचार है