नई दिल्ली/सुरेन्द्र प्रभात खुर्दिया:- हम यह भी नहीं कहते हैं कि जानवरों से जुड़ा पशु अध्ययन तुलनात्मक मनोविज्ञान क्यों हैं, हम यह भी नहीं कहते हैं कि जानवरों के मन-मस्तिष्क और उनकी मनःस्थ्ति का अध्ययन सरल प्रक्रिया हैं, बनिस्बत मनुष्य के हम यह भी नहीं कहते हैं कि पशु की मानसिक क्रियाओं की तुलना मनुष्य की मानसिक क्रियाओं से की जा सकती है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पशु मनोविज्ञान -व्यवहारों का अध्ययन संभव है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पशुओं की मानसिक क्रियाओं का अध्ययन महत्वपूर्ण है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि सरल रूप पशु- जीवन में उपलब्ध होता हैं, नहीं की मनुष्य जीवन में क्योंकि उनकी क्रियाए अत्यधिक जटिल होती है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि अन्तर्दृष्टि के सिद्धान्त के आधार पर पशु एवं मनुष्य दोनों के सीखने की क्रिया की व्याख्या समान रूप से प्रस्तुत क्यों की जा सकती है।
हम यह भी नहीं कहते हैं कि जानवरों से जुडा पशु अध्ययन का दुष्टिकोण तुलनात्मक है और तुलनात्मक मनोविज्ञान के नाम से जाना जाता है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि मनुष्यों और जानवरों के मनोविज्ञान की अध्ययन की विधियां क्यों होती है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि बाह्य निरीक्षण और अन्तर्निरीक्षण मनोविज्ञान का आधार है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि इन्सानों की भांति पशुओं को भाषा का ज्ञान नहीं होता है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पशुओं में अन्तर्निरीक्षण विधि संभव नहीं क्योंकि उनको भाषागत ज्ञान नहीं होता है।
हम यह भी नहीं कहते हैं कि जानवरों का बाह्य निरीक्षण मनोविज्ञान की एक उपयुक्त विधि को ही क्यों अपनाते है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पशुओं पर अन्तर्निरीक्षणात्मक और प्रयोगात्मक दोनों विधिया क्यों नहीं संभव है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि क्योंकि जानवरों में भाषागत और प्रयोगशाला दोनों अवस्थाओं में प्रयोग संभव नहीं है, एक तो उनकों भाषा का ज्ञान नहीं होना और दूसरा प्रयोगशाला की नियन्त्रित अवस्थाओं में उनके व्यवहार स्वाभाविक नहीं रह जाते, हम यह भी नहीं कहते हैं कि पशुओं की स्वाभाविक प्रतिक्रियाओं अथवा व्यवहारों के अध्ययन की एकमात्र विधि बाह्य निरीक्षण क्यों है, यह भी नहीं कहते हैं कि बाह्य निरीक्षण द्वारा जानवरों की अनेकानेक समस्याओं का अध्ययन संभव है, हम यह भी नहीं कहते हैं कि शिशुओं पर भी यही विधि लागू होती है, यह भी नहीं कहते हैं कि जानवरों के मनोजन्य - मनोजगत यानी मूड का अध्ययन भी बाह्य निरीक्षण विधि से संभव हैं।
ऊपरवर्णित अध्यययन पशु - मनोविज्ञान है, जिसमें पशुओं का कैसा मिजाज है उसका बाह्य निरीक्षण द्वारा जाना जा सकता हैं। यहां हम देश - दुनिया के चिडि.याघरों की बात कर रहे है, जहां ऐसी दुःखद वारदात को लेकर नागरिक समाज किंवकत्र्तव्यविमूढ. हो जाने के अवसर से दो चार होना पडा। क्या ऐसे घरों को जारी रहना चाहिए। दोनों वारदात - हादसों में जानवरों के बाडे में बच्चे और युवक के गिर जाने को लेकर है एक बडा मुद्दा बन गया। मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक अमेरिका के अरकंसास प्रांत के चिडियाघर के तेंदुए के बाडे में तीन साल का एक बच्चा गिर गया, और उस पर दो तेंदुओं ने आक्रमण कर दिया तथा जिसे काफी मशक्कत के बाद बचा पाए। काफी गभ्भीर रूप से घायल हो गया था। शुक्र समझों कि बच्चा खुशनसीब था ,जिसे बचालिया गया।
गौरतलब है कि गत 23 सितम्बर को दिल्ली के चिडि.याघर में भी ऐसा ही एक दुखद वाकया सामने आया था । जिसमें एक युवक बाघ के बाडे में गिर गया था जिसको बाघ ने मार डाला था। परन्तु अरकंसास प्रांत के चिडियाघर में गिरे अज्ञात बच्चें जैसा शोभाग्याशाली वह युवक मकसूद नहीं रह सका। दोनों देशों के घटनाक्रम में जहां अरकंसास प्रांत के चिडि.याघर के जू प्रशासन एवं बचाव कर्मियों ने जिस तत्परता से सक्रिय भूमिका निभाई जिसे उक्त बच्चे की जान बच गई, वो काबिलेतारिफ है। लेकिन भारत के दिल्लीप्रदेश के चिडि.याघर में जू प्रशासन और बचाव कर्मियों की गैर - जिम्मेंदारी जहां उजागर हुई, वही यह लापरवाही कोई पहले मर्तबा नहीं थी। पहले भी कई वाकया, घटनाएं घटित हो चुकी है। यही नहीं दोनो देशों के चिडि.याघर के खुले बाडे में गिरने का सवाल भी अनुत्तरित ही है। यह अलग बात है कि अपने - अपने देशों की सरकार क्या कार्यवाही करती है, उस पर देश और दुनिया की नजरे टिकी हुई है।
अरकंसास प्रांत के चिडि.याघर में अचानक बच्चें के गिरेने से वहां के दो तेन्दुओं में असुरक्षा की भावाना को लेकर चैकन्ना होना और उक्त बच्चे के पेरेन्ट्स और भीड -भाड. में से पत्थर आदि ईत्यादि फेके जाने से दोनों तेन्दुए ओर भयभीत तथा आक्रमक हो कर हमला बोल दिया, उन्हें अपने बचाव में ऐसा किया। क्योंकि भीड. - भाड. ने उन्हें ऐसा करने को मजबूर कर दिया और दुखद हादसा हो गया समय रहते बचाव कर्मियों द्वारा बचा लिया गया। दुसरी और भारत में दिल्लीप्रदेश के चिडि.याघर में युवक मकसूद का बाघ के बाड़े में गिर जाने पर मीडि.या रिपोर्टों के मुताबिक बाघ ने उसे कुछ भी यूं कहिए कि किसी भी प्रकार से उसे हांनि नहीं पहुचायी थी। जब अति हो गई, तो प्रत्थर वगैरह - वगैरह का भीड. द्वारा फेकना और शोरगुल आदि - ईत्यादि ने उसे और मकसूद दोनों को असुरक्षित होने के चक्कर में उसे और अपने को सुरक्षित स्थान पर ले जाना हीं उचित समझा। इस दरमियान घसिटें जाने के कारण मकसूद की जान चली गई और दुखद वाकया घटित हो गया।
उक्त युवक को कहीं पर कोई जख्म ईत्यादि के निशान नहीं थे। ऊपरवर्णित घटनाक्रम में टाइगर और भीड. यानि दोनों की मनोदशा को समझा जा सकता हैं। टाइगर को खतरा महसूस हुआ उक्त भीड. की उतावलेपन तथा उसकी जल्दबाजी के कारण, भीड. की चिन्ता से चिन्तित कही उसे बाघ मार ना दे। यही असमंजस के कारण यह दुखद वाकया घट गया। वही भीड. को टोकने रोकने और अवेयरनेस का नहीं होने का कारण भी कम जिम्मेदार नहीं है। जानवरों के साथ ऐसी स्थिति में कैसा व्यवहार करना चाहिए, यह बताने वाला कोई जिम्मेदार अधिकारी या कर्मचारी का भी नहीं होना इस वारदात के लिए कम जिम्मेदार नहीं है। तिहाड. सेन्टर जेल हास्पिटल मे कार्यरत जाने माने मनोचिकित्सक विशेषज्ञ डाक्टर सन्तोष कुमार शाह का कहना है कि जानवरों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए उस के बारे में परिजनों या अन्य प्रकार से अवेयरनेस बहुत जरूरी है।
जब जानवरों को छेडछाड.होती हैं तो किसी भी प्रकार के हादसे की संभावना बनी रहती है। हमारा अनुभव बताता है कि कई मर्तबा हमने सुना होगा ज्रगलों में अचानक खतरनाक जानवर को सामने आ जाने पर कई लोगों ने शान्त और धर्य भाव का परिचय दिया तो समस्या हल हो जान के बारे में सुना पढा हैं । कहने का अभिप्रार्य यह कि किसी भी प्रकार की छेडछाड. नहीं करने पर जानवर कभी नुकसान नहीं पहुचाता है। दोनों वारदातों में जानवरों की कोई गलती नहीं थी। दिल्ली चिडियाघर प्रकरण में तो जू प्रशासन की गलती साफ उजागर हो रही है। एक्सपट्र्स की माने तो उक्त हादसे को जानवर की कोई गलती नहीं मानकर चिडियाघर प्रशासन की गलती मानते है। ऐसे जू घरों को बन्द कर देना चाहिए और इसकी मान्यता खत्म कर होनी चाहिए। वैसे भी एनिमल राइट्स से जुड़े लोग शुरू से ही जू के खिलाफ रहे हैं कुछ भी हो देश - दुनिया के इन हादसों ने जानवरों को लेकर उनके मनोविज्ञान व्यवहरों के मुद्दें राट्रीय और अन्र्तराट्रीय बहस की दरकार बने तो है।