पुराने दौर से ही महिलाओं की वर्जिनिटी (कौमार्य) बेहद कीमती चीज़ मानी जाती है। हम दुनिया भर के अब तक के इतिहास पर नजर डालें, तो पता चलेगा कि वर्जिनिटी को मूल्यों और संस्कारों से जोड़कर देखा जाता रहा है। खास तौर पर महिलाओं की वर्जिनिटी पर ज्यादा जोर दिया जाता है। लेकिन अब यह मान्यता टूट रही है। शादी से पहले सेक्स अब कोई वर्जित विषय नहीं रहा। पुरानी पीढ़ी की मान्यताओं और शिकायतों से परे शादी से पहले सेक्स आज की जरूरत बन चुका है।
जो कपल्स रिलेशनशिप में रह रहे हैं, वे सेक्स को लेकर फ्री माइंडेड हैं। वे पाबंदी और नैतिकता के बंधनों से आजाद हैं। वे मनमर्जी से सेक्स करते हैं। उनके लिए यह जरूरी नहीं है कि रिलेशनशिप शादी में तब्दील हो जाए। जब भी शादी और खासकर अरेंज मैरेज की बात आती है, तो उनकी भौहें चढ़ जाती हैं। ऐसे में उनके लिए वर्जिनिटी काफी मायने रखती है। ऐसी सोच आज भी बहुत सी महिलाओं के मुश्किलें पैदा कर देती है।
गाइनकॉलजिस्ट महेंद्र वत्स के मुताबिक हमारे समाज में इस तरह की मानसिकता वाले लोगों की तादाद बड़ी संख्या में है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ये सारी बातें हमारी संस्कृति और परंपरा में मजबूती से बनी हुई हैं। डॉक्टर वत्स के मुताबिक, ‘एक आम सवाल से मुझे हमेशा दो-चार होना पड़ता है। मैं कैसे पता करूं कि मेरी गर्लफ्रेंड या होने वाली पत्नी वर्जिन है? इसका साफ जवाब है कि इसे जानने का कोई रास्ता नहीं है।’
सेक्सोलॉजिस्ट डॉ. राजन भोसले के मुताबिक वैसे तो वर्जिनिटी कोई बड़ा इश्यू नहीं है, मगर मर्दों की पुरानी शिकायत है कि पहली रात में उनकी पत्नी को ब्लीड नहीं हुआ। यह पूरी तरह से बेवकूफाना सोच है कि ब्लीड नहीं हुआ तो वह वर्जिन नहीं है। ऐसा सभी के साथ जरूरी नहीं है। इसका मतलब यह नहीं कि वर्जिन नहीं है इसलिए ऐसा हुआ।’
जानिए, क्या है हकीकत
सच यह है कि फीमेल प्राइवेट पार्ट में मौजूद हाइमन के रप्चर होने से ब्लीडिंग होना वर्जिनिटी का सबूत नहीं है। सच यह है कि कुछ महिलाओं में तो हाइमन जन्म से नहीं होती। कई महिलाओं में यह लेयर बेहद इलास्टिक होती है और इंटरकोर्स के दौरान भी रप्चर नहीं होती। यही नहीं, कई महिलाओं को इसके रप्चर होने के बारे में पता ही नहीं चलता। हाइमन को सेक्स किए बिना दूसरी वजहों से भी नुकसान पहुंच सकता है। स्पोर्ट्स, डांसिंग, घुड़सवारी या टू-वीइकल्स पर पांव इधर-उधर करके बैठने से भी इसे नुकसान पहुंच सकता है।
कोई लड़की वर्जिन है या नहीं, इसका पता दो ही तरीकों से चल सकता है- या तो वह प्रेगनेंट हो चुकी हो या फिर वह खुद स्वीकार कर ले। एक सेफ हाइमन कभी भी वर्जिनिटी का सबूत नहीं हो सकती, क्योंकि आजकल तो एक छोटा सा ऑपरेशन करवाकर भी आर्टिफिशल हाइमन लगाई सकती है। कई सारे डॉक्टरों के पास ऐसे केस आ रहे हैं। अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि एक प्लास्टिक सर्जन आसानी से हाइमन की तरह के टिश्यूज़ बना सकते हैं। इस प्रक्रिया को हाइमनोप्लास्टी कहते हैं।
फैक्ट्स कहते हैं कि सिर्फ 42 प्रतिशत महिलाओं को ही पहले इंटरकोर्स के दौरान ब्लीडिंग होती है। इसलिए यह कहना समझदारी नहीं है कि पहली बार ब्लीड करने का मतलब वर्जिन होना है।
नोट: याद रखें, हैपी मैरेज के लिए वर्जिनिटी ही एक आधार नहीं है। जरूरी है कि दोनों पार्टनर्स के बीच ईमानदारी और भरोसे का रिश्ता बना रहे।