प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते साल(2013) इंडिया टुडे के कॉनक्लेव में भाषण देते हुए कहा था, "(मेरा)कोई मंत्र नहीं है, मैं मंत्र और तंत्र की दुनिया से काफ़ी दूर हूं।" वह शायद ख़ुद ये न मानते हों कि काम करने का उनका अपना ख़ास तरीक़ा है। मगर ये सच नहीं है। मोदी के संवादों में एक स्टाइल है और एक पैटर्न भी। अनुप्रास अलंकारों से सरलीकृत उनका संवाद इसलिए असरदार भी है। पुराने मुद्दों को भी मोदी एक नये छौंक, नये जुमलों के साथ पेश कर रहे हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि मोदी अपनी बात लोगों तक पंहुचा पाने में बेहतरीन साबित हुए हैं। उनके जैसे कम्युनिकेटर दुनिया में चुनिंदा राजनेता ही हैं, जिनमें अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा भी शामिल हैं। भारत में उनके जैसा दूसरा असरदार कम्युनिकेटर शायद नहीं है। इतना ही नहीं, ये भी सच है कि मोदी एकदम पेचीदा मुद्दों की बात भी फ़ॉर्मूले और स्लोगन के ज़रिए करते हैं। वे अनुप्रास अलंकार, लय और छंद का इस्तेमाल धड़ल्ले से करते हैं। स्क्रॉल वेबसाइट ने मोदी के इस अंदाज़ पर रिपोर्टिंग करते हुए लिखा है, "प्रधानमंत्री कुछ इस तरह अपने संदेशों को आसान और मुहावरेदार बना देते हैं कि उनके समर्थकों को प्रभावित कर सके।
रिपोर्ट में आगे कहा गया है, "चुनाव अभियान से लेकर भारतीय राजनीति में शिखर तक पहुंचने के अपने सफ़र में नरेंद्र मोदी ने हमारे शब्दावली में चुटीले शब्दों, जुमले और आकर्षक मुहावरों की संख्या बढ़ाई है जो न सिर्फ मोदी, बल्कि सरकार के ही अंदाज़ को परिभाषित कर रही है।" जैसा कि हाल ही में, प्रधानमंत्री ने अपने एक बयान में कहा, "3 डी केवल भारत के पास है।" उन्होंने कहा, "दुनिया एशिया की तरफ़ देख रहा है। लेकिन उन्हें नहीं मालूम है कि जाना कहां है। जो देश पैसा लगाना चाहते हैं, उन्हें हम एक ठिकाना दे सकते हैं। डेमोग्राफ़िक डिविडेंड, डेमोक्रेसी और डिमांड, ये तीनों भारत में मौजूद हैं। एशिया में केवल भारत में।" इसी जुमले का इस्तेमाल अंग्रेज़ी अख़बार इकॉनामिक टाइम्स के दो सितंबर की रिपोर्ट के मुताबिक़ मोदी ने अपनी जापान यात्रा में भी किया था। अनुप्रास का मतलब लगातार एक ही अक्षर से शुरू हुए शब्दों का इस्तेमाल है। मोदी इसमें निपुण हैं। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पहले भी इस तरह के जुमलों का इस्तेमाल करते रहे हैं (मसलन चाल, चरित्र, चेहरा.. ) उन्होंने भारत के ब्रांड निर्माण की बात करते हुए 5 टी का ज़िक्र किया था। उनके मुताबिक़ ये पांच टी है- टैलेंट (प्रतिभा), ट्रेडिशन (परंपरा), टूरिज़्म (पर्यटन), ट्रेड (कारोबार) और टेक्नॉलाजी (तकनीक)। अपनी सरकार के बजट का ज़िक्र करते हुए प्रधानमंत्री ने 10 जुलाई को 3 एस का ज़िक्र किया था। उन्होंने कहा था, "विकास में 3 एस होना चाहिए, समवेषक, सर्वदेशक, सर्वस्पर्शी।" इसका मतलब ये है कि विकास समावेषी होना चाहिए और हर किसी तक पहुंचना भी चाहिए।
प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के लिए 4पी को मंत्र बताया था। उन्होंने कहा, "अगर हम सुशासन को लागू करना चाहते हैं तो हमें चार पी की ओर ध्यान देना होगा- पीपल, प्राइवेट, पब्लिक, पाटर्नरिशप। हमें पीपीपी से पीपीपीपी की ओर बढ़ने की ज़रूरत है।" पीपीपी और पीपीपीपी में क्या अंतर है, इसको लेकर मैं निश्चिंत नहीं हूं लेकिन दोनों एक ही अर्थ को व्यक्त करता है। मेरा अनुमान है कि मोदी अपना मुहावरा गढ़ना चाहते होंगे, लेकिन सोचा होगा कि पीपीपी का ज्यादा इस्तेमाल हो चुका है, तो उसमें उन्होंने थोड़ा बदलाव कर दिया। ऐसा ही उनका एक जुमला पांच एफ़ फ़ार्मूला वाला भी है। उन्होंने एकीकृत कपड़ा उद्योग की बात करते हुए कहा था, "फ़ार्म से फ़ाइबर, फ़ाइबर से फ़ैब्रिक, फ़ैब्रिक से फ़ैशन, फ़ैशन से फ़ॉरेन।" उन्होंने एक अन्य मुद्दे पर भी 3 पी की बात की है। जी न्यूज़ ने 14 अगस्त को रिपोर्ट किया है, "लेह लद्दाख़ के लिए मोदी ने प्रकाश, पर्यावरण और पर्यटन का फार्मूला देते हुए कहा कि अगर इन तीनों का इस्तेमाल सही ढंग से हुआ तो देश को फ़ायदा होगा।"
इसके बाद उन्होंने 3 एस का इस्तेमाल भी किया है। डीएनए की नौ जून की रिपोर्ट के मुताबिक़, "मोदी ने कहा कि चीन के साथ प्रतियोगिता करने के लिए देश को स्किल, स्केल और स्पीड की ज़रूरत है।" चुनाव अभियान के दौरान मोदी ने 3 एके की बात कही थी। उन्होंने कहा था, "3 एके की पाकिस्तान में प्रशंसा होती है- एके 47, एके एंटनी और एके- 49, जिन्होंने नई पार्टी बनाई है।" एके एंटनी तब देश के रक्षा मंत्री थे, मोदी के मुताबिक़ वे पाकिस्तान के प्रति नरम रवैया रखते थे। अंतिम एके से उनका तात्पर्य अरविंद केजरीवाल से था। ऐसा ही मोदी का एक फ़ॉर्मूला है पी2जी2 भी रहा है। छह फरवरी के इकॉनामिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ मोदी ने कहा, "हमें पी2जी2- प्रो पीपल गुड गर्वेनेंस की ज़रूरत है।"
कई बार मोदी शानदार मुहावरा गढ़ने में भी कामयाब हुए हैं। उन्होंने भारत को निवेश का केंद्र बनाने के लिए बदलाव लाने का वादा करते हुए कहा था, "रेड टेप से रेड कारपेट तक।" हालांकि कई बार मोदी बिना ज़रूरत के चालाकी करते भी नज़र आते हैं। मसलन उन्होंने स्लोगन दिया था, "स्कैम इंडिया से स्किल इंडिया तक।" चीन के राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान मोदी ने स्लोगन दिया, "इंच (इंडिया-चीन) से माइल्स ( मिलिनियम ऑफ़ एक्सेप्शनल सिनर्जी) तक।" मोदी की ख़ासियत ये है कि वे औपचारिक होकर बोलने को तरजीह नहीं देते। यही उनको बेहतरीन कम्युनिकेटर बनाता है। उन्होंने कहा, "हमें लाइफ़ को एक फ़ाइल में रखने की ज़रूरत है। केवल सुविधाएं बढ़ाना काफ़ी नहीं, हमें लोगों के जीवन में गुणवत्ता भी बढ़ानी होगी।" क़ानून के मसले पर उन्होंने कहा, "देश को एक्ट की ज़रूरत नहीं है, बल्कि एक्शन की ज़रूरत है।" जरूरत शायद कुछ जुमलों की भी है, जो लगता है जारी है।